मुझे यह जानकर प्रसन्नता है कि “राष्ट्रीय समाज विज्ञान परिषद” का पांचवा वार्षिक अधिवेशन, दिल्ली में हंसराज महाविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित हो रहा है ।
वस्तुतः 'विज्ञान और समाज विज्ञान’ दोनों ही ज्ञान की अभिन्न शाखाएं हैं और समाज का अध्ययन करने तथा समाज की समस्याओं का समाधान करने में विज्ञान के साथ-साथ समाज विज्ञान की विशेष भूमिका रहती है।
इस अधिवेशन का मूल विषय “भारतवर्ष के परंपरागत ज्ञान में समाज विज्ञान” महत्वपूर्ण है और मैं आशा करता हूँ कि अधिवेशन में विभिन्न विद्वान इस पर विचार- विनिमय करेंगे । मुझे विश्वास है कि अधिवेशन में प्रस्तुत शोध पत्रों और विमर्शों के आधार पर जो निष्कर्ष प्राप्त होगा उससे सबको लाभ होगा ।
मैं, इस अवसर पर प्रकाशित होने वाली "स्मारिका" के लिए बधाई देता हूँ और अधिवेशन की सफलता के लिए शुभकामनाएं प्रेषित करता हूँ।
THE LIEUTENANT GOVERNOR, DELHI
