Address by Hon’ble Lt. Governor on the 105th Foundation Day of Jamia Millia Islamia.

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  • Vice-Chancellor, Prof. Mazhar Asif साहब

  • Registrar, Prof. Mohammad Mehtab Alam Rizvi साहब

  • मोहतरम असातिज़ा

  • यहां तशरीफफरमां तलबा...., 

  • खवातीन ओ हज़रात


 

 

  • जामिया मिलिया इस्लामिया के, इस 105 साला यौमे तासीस, (Foundation Day) के तारीखी और खुसूसी मौके पर, मुझे यहां आकर बेहद खुशी हो रही है। 

     

  • यह खुशी इसलिए भी है, क्योंकि मैं उन तलबा के दरमियान हूं, जिनके कंधों पर, इस अजीम मुल्क को, दुनिया का सरताज बनाने का दारोमदार है....,

 

  • जाहीर है कि 105 सालों का सफ़र तय कर, आज इस मंजिल पर पहुंचना, आसान नहीं रहा होगा, पर इस सफ़र को कामयाबी से तय करने में हमारे बुजुर्गों, ने कई रास्ते ढूंढे होंगे, और तभी आज हम इस मंजिल पर पहुंचे हैं।

     

  •  ठीक ही कहा जाता है, कि

    ढूंढोगे तो ही रास्ते मिलेंगे, मंजिलों की फितरत है, कि वह खुद चल कर नहीं आतीं

     

  • मुझे खुशी इस बात की भी है, कि आज जिस जामिया में हम हैं, उसके कयाम का तसव्वुर, बाबा--कौम (राष्ट्रपिता) महात्मा गांधी..., और गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने, एक ऐसे इदारे के तौर पर पेश किया था, जो तमाम Communities के तलबा को, तरक्की पसंद तालीम..., और कौम परस्त नजरियात पेश करेगा।

     

  • उस वक्त, देश में ऐसे तअलीमी इदारों की जरूरत थी, जहां तालीम के साथ-साथ, जद्दोजहद--आजादी का पैगाम भी, आवाम के दरमियान फैलाया जा सके।

     

  • उन्होंने महसूस किया था, कि ये इदारा, तालीम के साथ-साथ, तलबा की किरदार-साज़ी (चरित्र निर्माण) कर, उनकी जिंदगियों को रोशन करने..., और मुल्क का मुस्तकबिल संवारने का काम करेगा। 

     

  • इन 105 बरसों में, जामिया एक ऐसा मजबूत दरख्त बन चुकी है, जिसकी शाखें, हर शोबे (Field) में लोगों को काबिल बना रही हैं। 

     

  • इस तरह से, आज यह एक मुकम्मल यूनिवर्सिटी बन चुकी है। 

     

  • मुझे बताया गया है कि, आज यह मुल्क में, चौथे नंबर की आला दर्जे की University बन चुकी है। यह देश की दूसरी Universities के लिए भी एक मिसाल है। 

     

  • मैं इस बात से बखूबी वाकिफ हूं, कि यहां पढ़ने वाले तलबा, मुल्क के कोने-कोने से आते हैं, और मुल्क के मुस्तकबिल की तामीर में, अपना तआवुन (योगदान) देते हैं। 

     

  • खवातीन--हज़रात....,इस जामिया से बड़े ही मुअज़्ज़िज़ लोगों का नाम जुड़ा हुआ है, जिनमें से एक नाम, मौलाना अबुल कलाम आजाद साहब का भी है। 

     

  • ये वो नाम है, जिसने मुल्क को IIT, IIM, UGC जैसे बा-वकार इदारे दिए। यह बताता है कि वह कितने दूर-अंदेशी थे। 

     

  • जब भी उनका जिक्र होता है, तो हमें, दिल्ली की जामा मस्जिद पर दिया, उनका वो खुतबा याद आता है, जो उन्होंने 23 अक्टूबर 1947 को दिया था। 

     

  • उन्होंने अपनी तकरीर में कहा था

    सितारे टूट गए तो क्या हुआ, सूरज तो चमक रहा है...,

    उससे किरणेमांग लो..., और उन अंधेरी राहों में बिछा दो...., जहां उजाले की सख्त ज़रूरत है। 

     

  • मैंने उनकी बातों को यहां इसलिए दोहराया है, आपको इसी तालीम की रोशनी से अंधेरे को दूर करना है..., और यही पैगाम गोशे-गोशे में फैलाना है। 

     

  • खवातीन--हज़रात...., मुझे आज यहां पर, यह कहते हुए कोई गुरेज नहीं है, कि यहां से तालीम-याफ्ता तलबा, आज मुख्तलिफ इदारों में, आला ओहदों पर फाइज़ हैं। 

     

  • गुजस्ता बरसों में,यहां के तलबा, कई National और International Scholarship हासिल करने में कामयाब हुए हैं।

  • यहां की कोचिंग से कई तलबा, Civil Service जैसे बा-वकार इम्तेहानात (Prestigious Exam) को पास कर IAS, IPS बनकर, आज मुल्क की तरक्की और खुशहाली में अपना अहम किरदार अदा कर रहे हैं। 

     

  • इस इम्तियाज को हासिल करना, जामिया और यहाँ के तलबा के लिए, बड़े ही फख्र की बात है। 

  • मुझे खुशी है, कि जामिया, तालीम के साथ-साथ, मुल्क के मुस्तकबिल की तामीर में भी, अपना नुमायां किरदार अदा कर रही है। 

  • जामिया को इस मुकाम पर लाने में, जितनी मशक्कत यहां के तदरीसी अमले (Teaching Staff)  ने की है, उतनी ही आप तलबा की भी है। 

  • जामिया, हमारी सक़ाफ़त और रवायत का नाम है। आज पूरे मुल्क में, इसका नाम,पूरे ऐहतराम..., और वकार के साथ लिया जाता है।

     

  • अब जामिया एक कौमी यूनिवर्सिटी न रहकर, एक Global Knowledge Hub बन चुकी है, लेकिन जामिया का सफ़र यहाँ तक सीमित नहीं है, अभी काफी कुछ और करना बाकी है।

     

  • इस मौके पर मुझे हफीज़ बनारसी का एक शेर याद आता है, उन्होंने कहा था

    चले चलिए, कि चलना ही दलील--कामरानी है,
    जो थककर बैठ जाते हैं, वो मंजिल पा नहीं सकते” 

     

  • दोस्तो...., तालीम हासिल करना..., और तालीम हासिल करने के काबिल होना, दो अलग बात हैं।

  • इसलिए मेरा आपसे ये मुतालबा है कि, आप सिर्फ ख़ुद ही तालीम याफ्ता होकर न रह जाएं, बल्कि, दूसरों को भी इसके ज़ेवर से, आरास्ता करने में अपना किरदार अदा करें। 

     

  • क्योंकि तालीम हासिल करना हुक्म--खुदाबंदी है। इल्म की ही रोशनी से हम, मार्फत हासिल कर सकते हैं..., और आरिफ बनते हैं। 

     

  • इसलिए आपको अपने इल्म की रोशनी न सिर्फ अपने लिए, बल्कि दूसरों के भी लिए कायम रखना है। यही हमारा अखलाकी फ़रीज़ा भी है।   

     

  • आप अपनी तालीम को तभी मुफीद बना सकते हैं, जब आप खुद को समाज के लिए मुफीद बनाएंगे। 

  • आपकी तालीम तभी मुफिद होगी, जब आप अपने, असातज़ा का ऐहतराम करें..., और उनसे सीखेंगे। 

     

  • इस मौके पर चकबस्त ब्रिज नारायण का वो शेर याद आता है

    "अदब तालीम का जोहर है, जेवर है जवानी का

    वही शार्गिदहैं, जो खिदमत उस्ताद की करते हैं"

 

  • खवातीन--हज़रात..., जैसा कि आप सभी इस बात से वाकिफ हैं, कि हमारे मोहतरम वज़ीरे आज़म (Hon'ble Prime Minister) श्री नरेंद्र मोदी जी, जो एक सियासतदान से भी कहीं ज्यादा महान अजीमतर शख्स हैं...., की क़यादत (leadership) में...,  केंद्र सरकार, देश में, World Class Educational Infrastructure Develop करने की दिशा में तेजी से काम कर रही है। 

     

  • देश भर के अनेक इदारों ने वज़ीरे आज़म की vision के अनुरूप पिछले सालों में बेमिसाल तरक्की हासिल की है। 

     

  • लेकिन हमारे इदारों और universities का सफ़र यहाँ तक ही सीमित नहीं है, अभी काफी कुछ करना बाकी है। 

     

  • किसी ने कहा है-

    इल्म की हद है कहाँ, कोई बता सकता नहीं, जैसे दरिया का किनारा कोई पा सकता नहीं     

 

  • खवातीन--हज़रात...., मैं यहां पहले भी आ चुका हूं, और मुझे हर मर्तबा, यहां पहले से कहीं ज्यादा मोहब्बत मिली है..., इसके लिए, मैं आपका दिल से शुक्रिया अदा करता हूं। 

     

  • मैं आपका मशकूर हूं, कि आपने, मुझे इस तारीख़ी मौके पर अपने दरमियान बुलाया..., और मेरा ऐहतराम किया। 

     

  • मुझे पूरा यकीन है कि आने वाले वक्त में..., और मौजूदा शुखल-जामिया की रहनुमाई में, ये जामिया नई बुलंदियों को छुएगी।

     

  • आखिर में, मैं तालिबे-इल्म और असातिजा को, उनके बेहतर मुस्तकबिल के लिए, अपनी तरफ से बेहतरीन ख्वाहिशात पेश करता हूँ, और अपनी बातों को चंद लफ्जों से खत्म करता हूँ

हमी वो इल्म के रौशन चराग़ हैं.... जिन को,

हवा बुझाती नहीं...., सलाम करती है....। 

 

  • आज हमारे सामने, हदफ (लक्ष्य) ये है कि, 2047 तक मुल्क को विकसित भारत बनाने के लिए, अपना अहम किरदार अदा करें।

  • ..., और इस इरादे से आगे बढ़े कि -

     

    ऐ ज़ज्बा--दिल ग़र मैं चाहूँ 

    हर चीज़ मुक़ाबिल आ जाए

    मंज़िल की तरफ दो गाम चलूँ 

    और सामने मंज़िल आ जाए।

     

    आता है तो तूफां आने दे 

    मंज़िल का ख़ुदा खुद हफीज़ है 

    क्या जाने कहीं इन मौज़ों में 

    बहता हुआ साहिल आ जाए।

     

शुक्रिया

जयहिंद

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